मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम,1993 के तहत राज्य मानवाधिकार आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया था। यह आयोग केवल राज्य सूची तथा समवर्ती सूची के विषयों पर ही जाँच कर सकता है। यदि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या अन्य कोई विधिक निकाय किसी मामले पर पहले से ही जाँच कर रहा हो तो राज्य मानवाधिकार आयोग हस्तक्षेप नही कर सकता है। वर्तमान में देश के 23 राज्यों में मानवाधिकार आयोग की स्थापना की जा चुकी है। आज के अंक में राज्य मानवाधिकार आयोग को राजस्थान के संदर्भ में समझेंगे।
राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग (Rajasthan state human right commission)
राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग की स्थापना वर्ष 2000 में एक विधेयक पारित किया गया जो अगस्त, 2001 में लागू हुआ।
आयोग का संगठन
सदस्य : ➤ (1+4) 1 अध्यक्ष तथा 4 सदस्य होते है।
अध्यक्ष : ➤आयोग का अध्यक्ष वही व्यक्ति होता है जो उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रह चुका हो।
सदस्य : ➤ आयोग का 1 सदस्य वह होगा जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो अथवा रह चुका हो।
ध्यान रहे यंहा उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश का उल्लेख है न की मुख्य का।
➤ आयोग का 1 सदस्य वह होगा जो ज़िला न्यायाधीश हो अथवा रह चुका हो ।
➤ आयोग के 2 सदस्य वे होंगे जो मानवाधिकारो के संदर्भ में विशेष जानकारी रखते हो।
Note: वर्ष 2006 में इस अधिनियम में संशोधन कर राज्य मानवाधिकार आयोग की सदस्य संख्या तथा सदस्यों की योग्यता में बदलाव किया गया।
➤ आयोग के 2 सदस्य वे होंगे जो मानवाधिकारो के संदर्भ में विशेष जानकारी रखते हो।
Note: वर्ष 2006 में इस अधिनियम में संशोधन कर राज्य मानवाधिकार आयोग की सदस्य संख्या तथा सदस्यों की योग्यता में बदलाव किया गया।
- सदस्यों की संख्या में बदलाव: सदस्यों की संख्या (1+4) एक अध्यक्ष व चार सदस्यों से घटाकर (1+2) कर दी गई।
- सादस्यो की योग्यता में बदलाव: अध्यक्ष पूर्व अनुसार ही। एक सदस्य भी पूर्व अनुसार उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो अथवा रह चुका हो। एक अन्य सदस्य वह होगा जो ज़िला न्यायाधीश हो अथवा उसे 7 वर्ष का न्यायिक अनुभव हो। या वह व्यक्ति जो मानवाधिकार के विषय में अच्छी जानकारी रखता हो।
आयोग में सदस्यों की नियुक्ति
- मुख्यमंत्री समिति के पदेन अध्यक्ष के रुप में ।
- राज्य मंत्रिमंडल सदस्य (गृह मंत्री)।
- विधानसभा अध्यक्ष।
- विधानसभा में विपक्ष का नेता।
- विधान परिषद सभापति।
- विधान परिषद में विपक्ष का नेता।
आयोग के सदस्यों को पदमुक्त करना
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्यों को पदमुक्त करने का अधिकार राष्ट्रपति को होता है, इसके लिए भी कई प्रावधान दिए हुए है । अतः पद मुक्ति के निम्न आधार हो सकते है:-
- सिद्ध कदाचार के आधार पर ।
- सदस्य को दिवालिया घोषित कर दिया गया हो ।
- सदस्य ने लाभकारी पद धारण कर लिया हो।
- वह मानसिक अथवा शारीरिक रूप से अक्षम हो।
आयोग सदस्यों व अध्यक्ष का कार्य काल
5 वर्ष का कार्यकाल अथवा 70 वर्ष की उम्र जो भी पहले पूरी हो तक पद पर बने रह सकते है। लेकिन यंहा दो बातों पर ध्यान देना आवश्यक है :
- यदि 70 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं हुई हो तो इस आयु तक पुनर्नियुक्त किए जा सकते है।
- कार्यकाल पूर्ण होने के बाद राज्य अथवा केंद्र सरकार के अधीन कोइ पद ग्रहण नहीं कर सकते है।
आयोग का कार्य
- मानवाधिकारो के संदर्भ में संवेधानिक व क़ानूनी प्रवधानो के क्रियान्वयन पर निगरानी रखना।
- NGO's को प्रोत्साहित करना ताकि वें उचित रूप से क्षेत्र में कार्य कर सके।
- मानवाधिकारो के सम्बंध में शोध करना एंव शोध को बढावा देना।
- मानवाधिकारो से सम्बंधित शिकायतों को सुनना।
- मानवाधिकारो की जानकारी का प्रसार करना तथा जागरूकता बढ़ाना।
- आयोग गम्भीर विषयों पर स्वविवेक से भी मामलों पर संज्ञान लेता है।
आयोग की शक्तियाँ
- समन जारी करने की शक्ति।
- शपथ पत्र अथवा हलफ़नामे पर लिखित गवाही लेने की शक्ति।
- गवाही को रिकोर्ड करने की शक्ति।
- देश की विभिन्न जेलों का निरीक्षण करने की शक्ति।
Note : आयोग उन्ही मामलों में जाँच कर सकता है जिन्हें घटित हुए एक वर्ष से काम समय हुआ हो। एक वर्ष से पूर्व घटनाओं पर आयोग को कोई अधिकार नहीं है।
आयोग मानवाधिकार उल्लंघन के दोषी को न तो दंड से सकता है ओर न ही पीड़ित को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता कर सकता है। लेकिन इसका चरित्र न्यायिक है।
राजस्थान मानवाधिकार आयोग द्वारा महत्वपूर्ण पत्रिका जारी की जाती है जिसका नाम है "मानवाधिकार संदेश" । अधिकांश परीक्षाओं में यह प्रश्न पूछा जाता है।
प्रथम अध्यक्ष व वर्तमान अध्यक्ष
प्रथम अध्यक्ष: सैयद सग़ीर अहमद
वर्तमान अध्यक्ष: प्रकाश टाटिया
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