''WTO का TFA और भारतीय हित''

TFA (Tread Facility Agreement)

भारत का TFA पर हस्ताक्षर न करने का मुद्दा विश्व पटल पर छाया हुआ है। लगभग 2 दशक पुराने इस एग्रीमेंट पर भारत ने अपने हित की लड़ाई लड़ी जो की भारत की मजबूती को वेश्विक स्तर पर परिलक्षित करता है। तमाम wto के सदस्य राष्ट्र् भारत पर दबाव बनाए हुए है। लेकिन भारत जैसे बड़ी आबादी वाले राष्ट्र को अपने किसानों और कृषिगत उत्पादन और सबसे बड़ा मुद्दा जो की खाद्य सुरक्षा है; की चिंता है।

     आइये पहले आसान भाषा में जानते है  की यह TFA क्या बला है ?
TFA ( व्यापार सुगमता करार) पारित होता है तो सभी सदस्य देशों में पारस्परिक कृषिगत व्यापार सुगम हो जायेगा। यूरोपीय राष्ट्र और अमेरिका जैसे देशो को भारत के कृषि बाजार में आने का अवसर प्राप्त होगा। TFA की शर्त है की सदस्य देश अपनी 'सब्सिडी को उत्पादन कीमत के 10% की सीमा' से अधिक नही रखेंगे। अर्थ यह है की यदि किसी वर्ष ₹ 200 करोड़ का गन्ना उत्पादित हुआ है तो इस पर सब्सिडी 20 करोड़ से अधिक न हो। इस उत्पादन किमत का आधार वर्ष1986-88 की किमतो पर रखा गया है रखा गया है। लेकिन उस आधार पर भारत के उत्पादन का आंकलन कर और सब्सिडी तय करना भारत के साथ अन्याय होगा क्योंकि उस समय से अब तक कीमतों में भारी अंतर आ चूका है । अब सवाल यह उठता है की क्या इससे भारत जैसे कृषिगत राष्ट्र् की उत्पादन क्षमता कम नही होगी? क्या किसान इस वैश्वीकरण के हेरफेर में फिर से यतीम बन जाएगा? क्या उत्पादन की कमी से भारत की 'खाद्य सुरक्षा' की योजना को आघात नही होगा?

आइये अब जानते है की भारत की सब्सिडी और इसकी जरुरत को-
भारत यह सब्सिडी MSP(Minimum Support Price) के रूप में देता है जो की गेहूँ पर लगभग 13%, चावल पर लगभग 24%, गन्ना-ज्वार-बाजरा पर लगभग 20% और अन्य । इस प्रकार भारत की औसतन सब्सिडी लगभग 22%  के पास है।  इस सब्सिडी में भी उत्पादन इतना अधिक नही की किसान न मर रहा हो ; तो कैसे हम सब्सिडी को बढ़ाने की बजाय वेश्विक दबाव में इसे कम कर दे। भारतीय सब्सिडी किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती है और 125 करोड़ की जनसंख्या के लिए पोषणयुक्त खाद्य सामग्री के लिए लगातार उच्च उत्पादकता ही भारतीय हित में है।

          अब मुद्दा है की इस तमाम मसले पर 26 नवम्बर 2014 को wto की विशेष बैठक में भारत की पैरवी wto के समक्ष करने को अमेरिका राजी हो गया है। लेकिन भारत 'पीस क्लॉज़' पर अनिश्चित कालीन छुट का पक्षधर है जबकि इसे 2017 तक ही रखा गया है। फिलहाल इससे भारत को राहत है लेकिन क्या 2017 में यदि कोई सहमति नही बन पाई तो क्या भारत उसी मोड़ पर आ खड़ा होगा जहा आज है।

भारत की नवनियुक्त सरकार ने विश्व के सामने विकाशशील देशो की राय निडरता से रखी यह सरहानीय है और अमेरिका जैसी ताकतों को झुकने को मजबूर किया इसे हम अपनी जीत मान सकते है लेकिन भारतीयो में अभी भी संसय की स्थिति बनी हुई है जैसे:
• क्या अमेरिका हमारी आवश्यकताओ को wto के सामने मजबूती से रख सकेगा ? क्योकि TFA तो अमेरिका के ही फायदे का सौदा है तो वो भला क्यों हमारे लिए पैरवी करेगा।
• विकसित देश इस मसौदे को दिसम्बर में ही पारित कराना चाहता है लेकिन संसय यह है की इस पर हस्ताक्षर करते है तो भारतीय हितों में सौदेबाजी का हक छिन जायेगा।
• हस्ताक्षर के बाद क्या गारन्टी है की प्ररूपो में संशोधन नही होगा।
• अमेरिका ने आज तक अपने हितो से समझोता नही किया तो भारत क्यों करे।
• जिस तरह अमेरिका को ''ग्रीन बॉक्स'' के तहत् छुट प्राप्त है वह अपनी सब्सिडियों को ग्रीन बॉक्स में डाल देता है तो फिर भारत के पक्ष में भी इसी प्रकार का ''फ़ूड सिक्योरिटी बॉक्स'' होना चाहिए।
• अमेरिका की सब्सिडी 402 बिलियन डॉलर (प्रोटेक्टिव) की है और भारत की सब्सिडी 10 मिलियन डॉलर की है तो दुनिया की नजर इस और ही क्यों।

** अब जानते है की भारत ने TFA पर अमेरिका से 4 बातो का समर्थन माँगा है
( मंत्रालय के अनुसार)
1- कृषि उत्पाद जैसे भण्डारण पर भारत जैसे देशों को खुली छूट दी जाये अतः भण्डारण की कोई सिमा न हो।
2- कृषि उत्पादों पर MSF का निर्धारण किसानों और उत्पादन की स्तिथि को देखते हुए छूट दी जाए।
3- कृषि पदार्थो के मूल्यों का आंकलन 1986-88 के वर्ष के आधार पर न होकर मोजुदा बाजार दर पर हो।
4- सब्सिडी की कटौती के लिए समय सिमा तय नही की जाए।

अब मुद्दा यह भी है की भारत इस पर हस्ताक्षर करने के दबाव में क्यों है जबकि यह एक  multilateral agreement यानी बहुपक्षीय समझोता है। WTO कहता है की TFA पारित होने पर वेश्विक अर्थ व्यवस्था का आकार 1 करोड़ डॉलर बढ़ेगा और भारत WTO का सदस्य राष्ट्र है तो सभी को मिल के इस और आगे बढ़ना चाहिए । जैसा की हमे ज्ञात है की यदि एक भी देश हस्ताक्षर नही करता है तो यह पारित नही होगा लेकिन जानकार मानते है की वेश्विक दबाव के चलते हमे हस्ताक्षर करना पड़ेगा क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था भी शेष विश्व के साथ जुडी हुई है, तो क्यों न हम अपने हितो को भुनाए , सौदेबाजी करे फिर हस्ताक्षर करे।

आशा है हमारी मजबूत लोकतांत्रिक सरकार इस और ध्यान देते हुए ही कोई फैसला लेगी जो हमारे किसानो के हितों, खाद्य सुरक्षा और जनकल्याण को पोषित करती हो।

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