मूल संविधान में न्यायधिशो की नियुक्ति से सम्बंधित अनुच्छेद 124(2) में उल्लेखित है की मुख्य न्यायधीशों की नियुक्ति हेतु राष्ट्रपति किसी (उच्चतम व उच्च न्यायालय के) न्यायधीश से परामर्श करेंगे जिन्हें वे उचित समझते हो।
1993 के एक वाद में उच्चतम न्यायालय ने परामर्श शब्द की व्याख़्या करते हुए कोलेजियम व्यवस्था (मुख्य न्यायाधीश व चार अन्य न्यायधीश) स्थापित की जिसका कार्य नियुक्ति सम्बंधित परामर्श देना होगा।
1993 के एक वाद में उच्चतम न्यायालय ने परामर्श शब्द की व्याख़्या करते हुए कोलेजियम व्यवस्था (मुख्य न्यायाधीश व चार अन्य न्यायधीश) स्थापित की जिसका कार्य नियुक्ति सम्बंधित परामर्श देना होगा।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन के लिए 121 वाँ संविधान संशोधन विधेयक,2014 तथा साथ ही न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक,2014 लाया गया। इस संशोधन द्वारा संविधान के अनुच्छेद 124(2) व 217 में संशोधन किया जायेगा एवं अनुच्छेद 127, 128, 217, 224, 224A और 231 तथा जंहा भी परामर्श की संवेधानिक व्यवस्था है वहा राष्टीय न्यायिक नियुक्ति आयोग शब्द रखा जायेगा। इस विधेयक द्वारा 3 नए अनुच्छेद जोड़े जायेंगे यथा:-
- 124A -आयोग की संरचना
- 124B -आयोग के कार्य
- 124C -इस नियुक्ति आयोग सम्बंधित कानून बनाने का अधिकार संसद को होगा।
नवगठित न्यायिक नियुक्ति आयोग की संरचना 6 सदस्यीय ( अध्यक्ष मुख्य न्यायधीश, 2 वरिष्ठ न्यायाधीश, 1 विधि मंत्री व 2 प्रबुद्ध व्यक्ति जो कानून के जानकार हो) होगी।
इसका मुख्यालय नई दिल्ली होगा। हालांकि इस विधेयक को अभी तक संविधान के अनुच्छेद 368(2) के तहत आधे से अधिक राज्यो का अनुसमर्थन मिलना शेष है तत् पश्च्यात राष्ट्रपति द्वारा हस्त्राक्षरित होने पर यह संविधान के 99 वें संविधान संशोधन के रूप में गिना जायेगा।
आलोचकों का मानना है की इस न्यायिक नियुक्ति आयोग के द्वारा न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सिमित करने का प्रयत्न किया जा रहा है जो संविधान के आधारभुत ढांचे का उल्लंघन है।
न्यायिक नियुक्ति आयोग जा विचार न्यायधिशो का समग्र एवं तार्किक विचार है, बशर्ते इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सिमित न किया जाए । ज्ञात है की भारत में शासन के किसी भी अंग की सर्वोच्चता का विचार नही किया गया है, बल्कि संविधान की सर्वोच्चता का विचार दिया गया है।
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