सार्वजनिक वित्तीय विवरण (अनुच्छेद 112) याने की बजट इस वर्ष फरवरी के अंतिम दिवस पर पेश न किया जा कर 1 फरवरी को पेश किया गया, हालांकि वित्तीय वर्ष पूर्व की तरह ही 1 अप्रेल से 28 फरवरी रहेगा. आज के लेख में बजट को समझने का प्रयास करेंगे लेकिन इससे पहले जान लेना आवश्यक है की बजट का हिसाब करोडो रुपयों में होता है जैसे की इस बार 24.42 लाख करोड़ रूपये रखा गया है । सुविधा की दृष्टि से हम पुरे बजट को 1 रुपया मान कर उसे 100 पैसे में व्यक्त करते हुए समझ सकते है।
Source: भारतीय वित्त मंत्रालय
100 पैसे मानते हुए आसानी से बजट को समझे:
बजट का सामान्य अर्थ होता है की किसी वित्त वर्ष में कितना पैसा किन-किन मदों से आएगा और हम उस पैसे को किस प्रकार या किन-किन मदों में खर्च करेंगे। इस प्रकार जितनी आय हो उतना ही खर्च बजट में दर्शाया जाता है याने की बजट आय व व्ययों का विवरण पत्र होता है। अब पुरे बजट को समझने के लिए हम इसे दो भागो में बांटते है सार्वजनिक आय और सार्वजनिक व्यय। आप निचे दिए फ्लो चार्ट को देख कर ध्यानपूर्वक अध्ययन कीजिये -
आप इस फ्लो चार्ट को प्रिंट भी कर सकते ताकि परीक्षा में जब प्रतिशत पूछा जाता है जेसे की इस वर्ष GST से कितना प्रतिशत आय प्राप्त होगी ? (उत्तर: निगम करो से 23 प्रतिशत) , सब्सिडी या अनुदान में कितना खर्च होगा ?(उत्तर : 9 प्रतिशत) इसी लिए यह चार्ट महत्वपूर्ण हो जाता है।
इस बार का बजट 24.42 लाख करोड़ = 100 पैसे (1 रुपया) मान लेते है। अब इसे दो भागो में बांट लेते है सार्वजानिक आय और व्यय, जेसा की फ्लो चार्ट में दिया है।
सार्वजनिक आय = 100 पैसा
सार्वजनिक आय से तात्पर्य सरकार द्वारा वसूले गये विभिन्न कर, शुल्क व सम्पत्ति बेच कर या क़र्ज़ लेकर अर्जित धन से है। इस आय का उपयोग ही सरकारें सार्वजनिक व्यय के लिए करती है। अर्थात 100 पैसा आया है तो व्यय भी इतना ही होना चाहिए। इसीलिए हर वर्ष बजट का निर्माण किया जाता है ताकि निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके। इसका उद्देश्य अधिकाधिक जन कल्याण ही होता है।
सार्वजनिक आय की प्राप्ति सरकार को दो तरह से होती है पहला राजस्व वसूली से दूसरा सार्वजनिक पूँजी से, इन दोनो का अध्ययन नीचे विस्तृत रूप में करते है।
1. राजस्व आय (78 पैसा) :
राजस्व आय से तात्पर्य एसी आय जो बार-बार आये, वपस नहीं करनी पड़े। इसकी अधिकता होने पर पूंजीगत व्यय में विस्तार किया जा सकता है । यह भी दो प्रकार से प्राप्त होता है 1. सरकार द्वारा लगाये जाने वाले कर तथा 2. गैर कर (सरकार को लाभ, ब्याज, लगान और वित्तीय सेवाओ के बदले प्राप्त आय)
- कर आय (70 पैसा): करो से मिलने वाली आय में प्रत्यक्ष कर एंव अप्रत्यक्ष कर शामिल है।
प्रत्यक्ष कर : एसा कर जिसका कराघात एंव करापात एक ही बिंदु पर हो अर्ताथ करदाता कर के बोझ को किसी अन्य व्यक्ति/संस्था पर स्थानांतरित नहीं कर पाए।
1. प्रत्यक्ष कर (35 पैसा)अप्रत्यक्ष कर : एसा कर जिसका कराघात एंव करपात एक ही बिंदु पर न हो अर्थात करदाता कर के बोझ को अन्य व्यक्ति/संस्था पर स्थानांतरित कर पाए। (लगे किसी और पर भरे कोई और )
- निगम कर : 19 पैसा
- आय कर : 16 पैसा
2. अप्रत्यक्ष कर (35 पैसा)
- केंद्रीय उत्पाद शुल्क (8 पैसा)
- GST वस्तु एंव सेवा कर (23 पैसा)
- सीमा शुल्क (4 पैसा)
प्रत्यक्ष कर (35) + अप्रत्यक्ष कर (35) = कर आय (70 पैसा)
- ग़ैर कर आय (8 पैसा): इसमें सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से प्राप्त होने वाले लाभों, ऋणों के बदले प्राप्त ब्याज, भूमि लगान तथा अन्य वित्तीय सेवाओं से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है जो कुल प्राप्त कर 8 प्रतिशत मात्र है।
कर आय (70 पैसा) + ग़ैर कर आय (8 पैसा) = राजस्व आय (78 पैसा )
2. पूँजीगत आय (22 पैसा):
एसी आय जो सिर्फ एक बार प्राप्त होति है लेकिन वापस चुकानी भी पड़ती हो। इसमें दो तरह की आय शामिल है पहली कर्ज के द्वारा प्राप्त आय और दूसरी गैर-कर्ज से प्राप्त आय।
- कर्ज से प्राप्त आय (19 पैसा) : यह विदेशों व विभिन्न अंतरष्ट्रिय संस्थाओं से क़र्ज़ के रूप में प्राप्त होती है।
- गैर-कर्ज से प्राप्त आय (3 पैसा) : यह विनिवेश आदि से प्राप्त होती है ।
इस प्रकार राजस्व आय (78 पैसा) + पूँजीगत आय (22 पैसा ) = सार्वजनिक आय (100 पैसा) होता है ।
अर्थात इस प्रकार सरकार को आय के रूप में कुल 100 पैसों की प्राप्ति हो जाती है। अब ख़र्च भी 100 पैसों से ज़्यादा नही होगा क्योंकि आय व्यय का तालमेल ही बजट है। अतः नीचे दिए लेख में विस्तृत रूप में सार्वजनिक व्ययों को समझे।
अर्थात इस प्रकार सरकार को आय के रूप में कुल 100 पैसों की प्राप्ति हो जाती है। अब ख़र्च भी 100 पैसों से ज़्यादा नही होगा क्योंकि आय व्यय का तालमेल ही बजट है। अतः नीचे दिए लेख में विस्तृत रूप में सार्वजनिक व्ययों को समझे।
सार्वजनिक व्यय = (100 पैसा)
सार्वजनिक व्यय से तात्पर्य सरकार द्वारा प्राप्त आय को सरकार चलाने, जनकल्याण के कार्यों व देश की सुरक्षा के लिए सुनियोजित रूप से ख़र्च करना है। यदि आय से अधिक व्यय होता है तो सरकार को घाटा लगता है लेकिन सरकारी ख़र्च के मामले में इस प्रकार के घाटे को अच्छा माना जाता है क्योंकि इन व्ययों के माध्यम से सरकार कई जनकल्याण के कार्य करती है साथ ही देश को विकसित करने के लिए आधारभूत संराचनाओ का निर्माण भी करती है।
सरकार द्वारा इस व्यय को भी बजट के रूप में कई भागो में बाँटा जाता है। वर्ष 2018-19 के लिए जारी बजट में व्ययों के विवरण को समझते है : केंद्र सरकार द्वारा अर्जित आय का कुछ हिस्सा राज्यों को विभिन्न रूप में प्रदान किया जाता है इसलिए इस व्यय को दो भागो में बाँटा जाता है; पहला केंद्रीय व्यय एंव दूसरा राज्यों का हिस्सा।
आशा है आप इस पूरे बजट को समझ पाए होंगे। इस लेख को आप प्रिंट कर के अपने पास रखे यह आपको आने वाली परीक्षाओं में प्रश्न हल करने में सहायता करेगा।
यदि आप गत वर्ष 2017-18 के बजट का अध्ययन करना चाहते है तो यंहा देखे : बजट 2017-18 फ़्लो चार्ट
इस के अध्ययन से आप दोनो बजटों में तुलना कर सकते है।
सरकार द्वारा इस व्यय को भी बजट के रूप में कई भागो में बाँटा जाता है। वर्ष 2018-19 के लिए जारी बजट में व्ययों के विवरण को समझते है : केंद्र सरकार द्वारा अर्जित आय का कुछ हिस्सा राज्यों को विभिन्न रूप में प्रदान किया जाता है इसलिए इस व्यय को दो भागो में बाँटा जाता है; पहला केंद्रीय व्यय एंव दूसरा राज्यों का हिस्सा।
1. केन्द्रीय व्यय (59 पैसा):
इसमें केंद्र द्वारा व्यय किया जाता है। केंद्रीय व्ययों को पुन: दो भागो में बांटा जाता है:- पूंजीगत व्यय/ योजनागत व्यय/ विकासात्मक व्यय (10 पैसा) : जैसा की नाम से ही स्पष्ट है विकासात्मक व्यय जो पूंजी निर्माण में खर्च किया जाता है जिनमें मुख्य रूप से ऋण आदायगी तथा निवेश शामिल है.
- राजस्व व्यय/गैर-योजनागत व्यय/गैर-विकासशील व्यय (49 पैसा): इसमें मुख्य रूप से 5 मदों पर खर्च किया जाता है-
- ब्याज अदायगी : 18 पैसा
- रक्षा/प्रतिरक्षा : 9 पैसा
- अनुदान/सब्सिडी: 9 पैसा
- पेंशन : 5 पैसा
- अन्य प्रशासनिक व्यय : 8 पैसा
2. राज्यों का हिस्सा (41 पैसा):
इसमें केंद्र द्वारा राज्यों को अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा विभिन्न मदों में ख़र्च के लिए दिया जाता है। केन्द्रीय करो से प्राप्त आय के राज्यों जी दिए जाने वाले हिस्से को पुनः 3 भागो में बांटा जाता है:- केन्द्रीय करो एंव शुल्को में राज्य का हिस्सा : 24 पैसा
- राज्यों को गैर योजनागत सहायता: 8 पैसा
- राज्यों को योजनागत सहायता: 10 पैसा
इस प्रकार केंद्रीय व्यय (59 पैसा) + राज्यों का हिस्सा (41 पैसा) = सार्वजनिक व्यय (100 पैसा) होता है। अतः कुल आय के बराबर ही कुल व्यय का बजट सरकार द्वारा बनाया जाता है।
आशा है आप इस पूरे बजट को समझ पाए होंगे। इस लेख को आप प्रिंट कर के अपने पास रखे यह आपको आने वाली परीक्षाओं में प्रश्न हल करने में सहायता करेगा।
यदि आप गत वर्ष 2017-18 के बजट का अध्ययन करना चाहते है तो यंहा देखे : बजट 2017-18 फ़्लो चार्ट
इस के अध्ययन से आप दोनो बजटों में तुलना कर सकते है।
बजट पर परीक्षाओं में बनने वाले प्रश्न :
- बजट 2018-19 में सर्वाधिक व्यय किन मदों पर किया जाएगा?
- बजट 2018-19 में सर्वाधिक आय किन करो के माध्यम से अर्जित की जाएगी?
- बजट 2018-19 प्रत्यक्ष कर अप्रत्यक्ष करो से कितना अधिक या कम रखा ग्या है?
- वर्तमान बजट में गत बजट की तुलना में मुख्य रूप से कहा बदलाव किए गए है?
इसी प्रकार के कई सवाल होंगे जो इस लेख व फलो चार्ट से पूछे जाएँगे। साथ ही कई प्रकार की घाटे की अवधारणाओ के प्रश्नो के उत्तर भी इसी से प्राप्त होंगे।
अर्थ्व्ययवथा में विभिन्न प्रकार के घाटों की अवधारणाए है इनका विस्तृत लेख आने वाले दिनो में पोस्ट किया जाएगा। नए लेखों व अध्ययन सामग्री से जुड़े रहने के लिए नीचे दिए गये बॉक्स में अपना email लिखे और सब्स्क्राइब करे। नए पोस्ट की अपडेट आपके इन्बाक्स में भेज दी जाएगी ।
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Source: भारतीय वित्त मंत्रालय
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