दैनिक समसामयिकी 03 June 2017

दैनिक समसामयिकी   03 June 2017

1. पेरिस जलवायु समझौते से हटा अमेरिका


  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को ऐलान किया कि अमेरिका 2015 के जलवायु परिवर्तन समझौते से बाहर हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस कठोर समझौते ने पक्षपातपूर्ण तरीके से अमेरिका को दंडित किया है और भारत एवं चीन जैसे देशों को फायदा पहुंचाया है। 

  • ट्रंप ने कहा, ‘‘मुझे पिट्सबर्ग के नागरिकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है ना कि पेरिस के लोगों के लिए।’ उनके ऐलान के बाद ग्रीनहाउस गैसों के दुनिया के दूसरे सबसे बड़े उत्सर्जक देश अमेरिका के कदम की निंदा की गई। 

  • उन्होंने व्हाइट हाउस के रोज गार्डेन से कहा, ‘‘बतौर राष्ट्रपति, मेरा एक दायित्व है और वह दायित्व अमेरिकी लोगों के प्रति है। पेरिस समझौता हमारी अर्थव्यवस्था को कमतर करेगा, हमारे कामगारों को अक्षम बनाएगा, अस्वीकार्य कानूनी जोखिम थोपेगा और हमें दुनिया के अन्य देशों की तुलना में स्थाई रूप से नुकसान में रखेगा।’

  • ट्रंप ने कहा, ‘‘यह वक्त पेरिस समझौते से बाहर निकलने का और पर्यावरण, हमारी कंपनियों, हमारे नागरिकों और हमारे देश की रक्षा के लिए एक नए समझौते को आगे बढ़ाने का है।’ उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के दौरान किए वादे को पूरा करने के लिए उठाए गए इस कदम की घोषणा करते हुए यह कहा। 

  • अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम बाहर निकल रहे हैं और हम फिर से मोलभाव करेंगे और हम देखेंगे कि क्या कोई बेहतर समझौता हो पाता है। यदि हम कर सकें तो अच्छा होगा। यदि हम नहीं कर सकें तो भी अच्छा होगा।’गौरतलब है कि पेरिस समझौता अमेरिका और अन्य देशों को बढ़ते वैश्विक तापमान को औद्योगिकीकरण पूर्व के स्तर से दो डिग्री सेल्सियस ऊपर रखने के लिए प्रतिबद्ध करता है। 

  • यह उसे 1. 5 सेल्सियस तक सीमित करने की भी हिमायत करता है। सिर्फ सीरिया और निकारागुआ ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने यह फैसला इसलिए किया कि पेरिस समझौता अमेरिका के प्रति पक्षपातपूर्ण है और यह कारोबार और रोजगार को बुरी तरह से प्रभावित करेगा।

  • उन्होंने कहा कि भारत को पेरिस समझौते के तहत इसकी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए करोड़ों डॉलर मिलेंगे और वह और चीन आने वाले बरसों में कोयला वाले ताप बिजली घरों को दोगुना करेंगे, इससे उन्हें अमेरिका के मुकाबले वित्तीय लाभ मिलेगा। 

  • ट्रंप ने कहा कि वह अमेरिका को दंडित करने वाले समझौते का सही मन से समर्थन नहीं कर सकते। उन्होंने फिर चीन का उदाहरण दिया और कहा कि समझौते के तहत कम्युनिस्ट शासन 13 साल तक कार्बन उत्सर्जन बढ़ाने में सक्षम होगा। 

  • ट्रंप ने कहा, ‘‘वे लोग जो कुछ चाहते हैं, उसे 13 साल तक कर सकते हैं। लेकिन हम नहीं।’ उन्होंने कहा कि भारत ने विकसित देशों से विदेशी सहायता के रूप में अरबों डॉलर हासिल करने के लिए अपनी भागीदारी प्रासंगिक की है। कई अन्य उदाहरण हैं। लेकिन मुख्य बात यह है कि पेरिस समझौता अमेरिका के प्रति बहुत ही पक्षपातपूर्ण है। 

  • ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि उन्होंने अपने फैसले के बारे में विस्तार से बताने के लिए फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी के नेताओं से फोन पर बात की है।

  • पांच बड़े असर

  • बढ़ेगी छोटे देशों की परेशानी : भले ही अमेरिका दुनिया में 15 फीसद कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हो पर विकासशील देशों को फंड मुहैया कराने और तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने की ग्रीन तकनीक प्रदान करने में उसका बड़ा योगदान है। ऐसे में उसके पीछे हटने से दुनिया के कई देशों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी।

  • चीन की चांदी :- अमेरिका का समझौते से पीछे हटना चीन के लिए लिए किसी अवसर से कम नहीं है। इससे उसे यूरोपीय और मेक्सिको, कनाडा जैसे अमेरिकी देशों के नजदीक जाने का मौका मिलेगा। यह उसके लिए रणनीतिक और आर्थिक दोनों लिहाज से फायदेमंद है। हाल ही में उसकी महत्वाकांक्षी योजना ओबोर (वन बेल्ट वन रोड) पर भी उसे कूटनीतिक बढ़त हासिल हो सकती है। इससे अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान उठाना पड़ सकता है।

  • निराश होंगे बिजनेसमैन :- अमेरिकी कारपोरेट शुरू से ही पेरिस जलवायु समझौते के पक्ष में रहा है। गूगल, एप्पल और जीवाश्म ईंधन का उत्पादन करने वाली एक्सॉन मोबिल समेत कई कंपनियां डोनाल्ड ट्रंप को इस संधि से जुड़े रहने को कह रही थीं। इन कंपनियों का भी मानना है अमेरिका के संधि में बने रहने से उसकी वैश्विक साख बढ़ती और कई अन्य अहम मुद्दों पर देशों से समझौता करने में अमेरिका का पलड़ा कमजोर नहीं पड़ता। लेकिन, अब स्थिति बदल गई है।

  • खात्मे की ओर कोयला युग : राष्ट्रपति ट्रंप भले ही कह रहे हों कि वह कोयला उद्योगों को बढ़ावा देकर अमेरिका को फिर से महान बनाएंगे लेकिन अब तक अमेरिका बहुत हद तकबिजली उत्पादन के लिए कोयले पर अपनी निर्भरता खत्म कर चुका है। अमेरिकी कोयला उद्योग में काम कर रहे लोगों की संख्या सौर ऊर्जा संचालित उद्योगों की तुलना में आधी है। हालांकि विकासशील देश आगे आने वाले कई दशकों तक कोयले पर निर्भर रहेंगे, लेकिन जिस हिसाब से अक्षय ऊर्जा के स्रोत सस्ते हो रहे हैं, उससे जल्द ही ये देश भी कोयले का इस्तेमाल बंद कर देंगे। 

  • घटेगा अमेरिकी उत्सर्जन:- पेरिस संधि से हाथ खींचने के बाद भी अमेरिका का कार्बन उत्सर्जन कम होगा। अनुमान है कि पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा कार्बन उत्सर्जन में कटौती का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था, उसका आधा उत्सर्जन जरूर कम किया जा सकेगा। इसकी सबसे बड़ी वजह है प्राकृतिक गैस के उत्पादन में बढ़ोतरी और इसकी लागत में भारी गिरावट


2. पेरिस समझौता तो बाध्यकारी बन चुका है


  • दक्षिणपंथी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते से हटने का निर्णय अमेरिका के रुख के अनुरूप ही किया है। तत्कालीन राष्ट्रपति ओबामा ने विश्व समुदाय के दवाब में पर्यावरण संरक्षण का तमगा हासिल करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 

  • अब पेरिस समझौता कानूनी रूप से बाध्यकारी हो चुका है, ऐसे में क्या संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व समुदाय अमेरिका की दादागिरी को रोक पाएगा?2015 में पेरिस में हुए जलवायु परिवर्तन समझौते पर 196 देशों ने हस्ताक्षर किए थे और उसके एक साल के अंदर ही कई देशों ने उसे लागू करने की घोषणा कर दी। 

  • समझौते के अनुसार यदि 55 देश समझौते पर हस्ताक्षर कर देंगे और उनके द्वारा कार्बन उत्सर्जन की मात्रा 55 फीसद हो तो यह समझौता कानूनी रूप से बाध्यकारी हो जाएगा। दुनिया में सबसे अधिक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले देशों में चीन (23 फीसद) सबसे बड़ा देश है और 19 फीसद के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका दूसरा देश है। 

  • चीन, रूस, भारत के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कारण राष्ट्रपति ओबामा को भी हस्ताक्षर करने पड़े थे। तब उनका विरोध हुआ था। क्योंकि अमेरिका और अन्य औद्योगिक देशों का मानना है कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम हुआ तो उनके देश की विकास दर गिर जाएगी और उनके नागरिकों के जीवन स्तर में गिरावट आ जाएगी। 

  • विकसित देश चाहते हैं कि वे औद्योगिक विकास करते रहें और बदले में गरीब देशों को ग्रीन फंड देते रहें। यानि जितना वे ग्रीन हाउस गैस छोड़ें, उतनी ही राशि गरीब देशों में बांटें। उनका मकसद है कि गरीब देश औद्योगिक विकास न करें। 

  • ट्रंप के निर्णय की दुनिया भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। संयुक्त राष्ट्र ने समझौते से हटने को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा है कि इससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के नियंतण्र प्रयासों को बड़ा झटका लगा है। 

  • संयुक्त राष्ट्र महासिचव एंतोनियो गुतरेस ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि इससे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निबटने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर और सुरक्षित दुनिया के निर्माण के प्रयास प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि पेरिस समझौते को वर्ष 2015 में दुनिया के सभी देशों ने अंगीकार किया था क्योंकि वे जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों से अच्छी तरह वाकिफ हैं और इससे निबटने के उपायों के महत्व को भी भलीभांति समझते हैं।

  • भारतीय हरित संगठनों ने की ट्रंप की आलोचना : कुछ भारतीय पर्यावरणविदों ने कहा कि अमेरिका का कदम मुद्दे पर भारत को नियंतण्र नेतृत्व प्रदान कराने का अवसर है। सीएसई ने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण समझौते से बाहर निकला हो। अमेरिका यह कहते हुए क्योटो प्रोटोकॉल से निकल गया था कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य की मात्रा निर्धारित नहीं की है। 

  • ओबामा, जर्मनी, इटली, रूस और फ्रांस ने एक संयुक्त बयान जारी करके इस निर्णय पर निराशा जाहिर की है। फ्रांस के पर्यावरण मंत्री निकोलस हयलोट ने कहा कि फ्रांस ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए अपने प्रयास जारी रखेगा। उन्होंने कहा कि यह समझौता अभी खत्म नहीं हुआ है।


3. मिसाइल प्रणाली लाएंगे, बाकी यहीं बनाएंगे

  • रूस के उपप्रधानमंत्री दमित्री रोगोजिन ने कहा है कि रूस भारत को एस-400 ट्रायंफ विमान रोधी मिसाइल प्रणालियों की आपूर्ति करने की तैयारी कर रहा है। दोनों पक्ष बिक्री की शर्तों पर र्चचा कर रहे हैं। 

  • भारत को एस-400 विमान रोधी मिसाइल प्रणालियों की आपूर्ति करने को लेकर करार से पहले की तैयारियां की जा रही हैं। बाद में इन प्रणालियों को भारत में ही बनाए जाने की संभावना है।

  • उन्होंने कहा, ‘‘भारत को एस-400 विमान रोधी मिसाइल काम्प्लेक्सेस की आपूर्ति करने पर करार से पहले की तैयारियां जारी हैं।’ 

  • रूस की आधिकारिक संवाद समिति तास ने रोगोजिन के हवाले से कहा, ‘‘यह कहना अभी मुश्किल है कि इसमें कितना समय लगेगा। सरकारों के बीच एक समझौता है और अभी हम केवल शर्तों पर चर्चा कर रहे हैं।’

  • उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के इस शहर की यात्रा कर रहे हैं। भारत ने पिछले साल 15 अक्टूबर को रूस के साथ ट्रायंफ वायु रक्षा पण्रालियों पर पांच अरब डॉलर के एक करार की घोषणा की थी। भारत ने उसी समय चार अत्याधुनिक फ्रिगेट के अलावा कामोव हेलीकॉप्टरों के निर्माण के लिए एक संयुक्त उत्पादन सुविधा स्थापित करने की भी घोषणा की थी। 

  • गोवा में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच बातचीत के बाद समझौतों की घोषणा की गई थी। रोस्टेक स्टेट कॉरपोरेशन के महानिदेशक सग्रेई चेमेजोव ने अप्रैल में कहा था कि एस-400 विमान रोधी मिसाइल प्रणालियों के लिए भारत के साथ करार को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है।’

  • लंबी दूरी की मारक क्षमता : एस-400 ट्रायंफ वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली के पास 400 किलोमीटर तक के दायरे में शत्रु की ओर से आने वाले विमानों, मिसाइलों और ड्रोनों को भी नष्ट करने की क्षमता है।


4. रूसी निवेश के लिए नया विभाग बनेगा


  • भारत ने शुक्रवार को कहा कि देश में रूसी निवेश आकर्षित करने के लिये एक अलग से प्रकोष्ठ गठित किया जाएगा जो रूसी कंपनियों को स्थानीय परिवेश में निवेश प्रस्तावों पर आगे बढ़ने में मदद करेगा।

  • भारत-रूस व्यापार वार्ता को संबोधित करते हुए उद्योग सचिव रमेश अभिषेक ने कहा कि प्रकोष्ठ भारत जाने को इच्छुक रूसी कंपनियों को रास्ता दिखाएगा। 

  • अभिषेक ने कहा कि रूसी कंपनियों के लिए रक्षा, पोत निर्माण, बुनियादी ढांचा विकास तथा स्मार्ट शहर जैसे क्षेत्रों में निवेश के अवसर हैं। उन्होंने कहा, ‘‘देश में रूसी निवेश को बढ़ावा देने के लिए इनवेस्ट इंडिया के अंतर्गत एक अलग से प्रकोष्ठ स्थापित किया जाएगा।’

  • भारत ने सुधार की दिशा में अहम उठाए हैं जिससे देश को व्यापार के लिहाज से एक आकर्षक जगह बनने में मदद मिली है। इसमें जीएसटी, दिवालिया संहिता अन्य सुधार कार्यक्र म शामिल हैं।


5. चाबहार तैयार, कूटनीति को मिलेगी नई धार


  • भारत ने ईरान में चाबहार पोर्ट बनाने की शुरुआत थोड़ी देर से की, लेकिन इसकी रफ्तार अब पाकिस्तान में चीन निर्मित ग्वादर पोर्ट को टक्कर देने लगी है। 

  • चाबहार पोर्ट के निर्माण से जुड़े तमाम शुरुआती काम पूरे हो चुके हैं और अब यहां सिर्फ माल ढुलाई व माल उतारने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनें लगाई जानी बाकी हैं। केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने बताया, ‘चाबहार पोर्ट पर कुछ मशीनें लगाने का काम अगले कुछ महीनों में पूरा हो जाएगा। 

  • गुजरात स्थित कांडला पोर्ट से इसका लिंक स्थापित करने के सारे जरूरी काम हो चुके हैं। दिसंबर, 2017 से चाबहार पूरी तरह से काम करने लगेगा।’1चीन की मदद से पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट पर काम वर्ष 2007 से ही शुरू हुआ था, लेकिन बीच में स्थानीय विरोध व अन्य वजहों से इसका काम प्रभावित हुआ। 

  • चीन की कंपनियों ने वर्ष 2013 में इस पोर्ट के निर्माण कार्य को रफ्तार दी और अंतत: नवंबर, 2016 में ग्वादर पोर्ट का संचालन शुरू हुआ। लेकिन भारतीय कंपनियों ने चाबहार पोर्ट का काम 18 महीनों में ही पूरा कर लिया है। 

  • वैसे भारत, अफगानिस्तान और ईरान के बीच मई, 2016 में ही चाबहार पोर्ट के निर्माण का समझौता हुआ था। सरकारी अधिकारी बताते हैं कि हर निर्माण कार्य को समय से पहले पूरा करने का लक्ष्य लेकर चला जा रहा है। फंड की कोई समस्या नहीं है क्योंकि अब जापान भी इसमें पैसा लगाने को तैयार है।

  • भारत ने चाबहार पोर्ट के विकास के लिए कुल दो लाख करोड़ रुपये निवेश करने की योजना बनाई है। उन्होंने बताया कि पोर्ट का काम समय पर पूरा हो जाएगा और निर्धारित समय पर काम करने लगेगा। 

  • चीन पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान में बनाये गये ग्वादर पोर्ट को उस पूरे क्षेत्र के विकास के लिए एक बड़ा कदम मान रहा है तो भारतीय विशेषज्ञ भी इस बात को लेकर मुतमईन हैं कि चाबहार पोर्ट के शुरू होने से रूस, अफगानिस्तान और ईरान को लेकर भारत की कूटनीति में भी नया आयाम जुड़ जाएगा। 

  • भारत के लिए सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अफगानिस्तान को मदद पहुंचाने के लिए पाकिस्तान की राह देखने की बाध्यता खत्म हो जाएगी। दूसरा फायदा यह होगा कि रूस व भारत के बीच द्विपक्षीय कारोबार को अब तेजी से बढ़ावा मिलेगा। 


  • भारत और रूस ने चाबहार पोर्ट के बलबूते ही दस वर्षो के भीतर मौजूदा 1.9 अरब डॉलर के द्विपक्षीय कारोबार को बढ़ा कर 30 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा है। दोनों देशों के बीच रूस से गैस पाइपलाइन से गैस चाबहार तक लाने और वहां एलएनजी में तब्दील कर भारत तक जहाज से लाने की संभावना पर बात काफी आगे बढ़ चुकी है। 

  • तीसरा फायदा यह होगा कि ईरान और भारत के आर्थिक रिश्ते और प्रगाढ़ होंगे। भारतीय कंपनियां यहां अल्यूमीनियम प्लांट से लेकर यूरिया प्लांट लगाने तक की योजना बना रही हैं। साथ ही भारत इस पोर्ट से अफगानिस्तान के जाहेदान तक 500 किलोमीटर लंबी रेल लाइन भी लगाने जा रहा है।


6. सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने जताई उम्मीद : एयर इंडिया दो वर्ष में 8% वृद्धि दर हासिल होगी


  • नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने शुक्रवार को कहा कि 52,000 करोड़ रूपये के कर्ज के बोझ की वजह से एयर इंडिया को बेचना ‘‘काफी काफी मुश्किल’ है। सरकार को इस बारे में फैसला करना होगा कि एयरलाइन के कर्ज को आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से बट्टे खाते में डाला जाए।

  • घाटे में चल रही एयर इंडिया सरकार से मिले प्रोत्साहन पैकेज के बल पर टिकी हुई है। उसे कड़ी कारोबारी परिस्थितियों तथा प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। 

  • पनगढ़िया ने जोर देकर कहा कि सरकार को सबसे पहले यह फैसला करना होगा कि राष्ट्रीय एयरलाइन का निजीकरण किया जाए या नहीं। उन्होंने कहा कि विभिन्न मुद्दों पर विचार विमर्श करने की जरूरत है।

  • पत्रकारों से बातचीत में में पनगढ़िाया ने कहा कि मान लें कि एयर इंडिया के निजीकरण का फैसला किया जाता है तो यह मुद्दा आएगा कि इसके लिए राष्ट्रीय खरीदार ढूंढा जाए या विदेशी इकाइयों को भी इसके लिए बोली लगाने की अनुमति दी जाए। 

  • उन्होंने कहा कि एक अन्य मुद्दा यह आएगा कि क्या सरकार को इसमें कुछ हिस्सेदारी रखनी चाहिए बेशक कम ही। मुद्दा यह है कि एयर इंडिया राष्ट्रीय विमानन कंपनी है और ऐसे में हमें इसे कायम रखना चाहिए।


7. बिहार में पंचायतें हुई और सशक्त


  • राज्य सरकार ने विकास कार्यों को गति देने के उद्देश्य से ग्राम पंचायतों को और अधिक सशक्त एवं क्रियाशील बनाने के लिए बिहार पंचायत राज संशोधन अध्यादेश 2017 को शुक्रवार को अपनी मंजूरी दे दी।

  • मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में यहां हुई राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में पंचायती राज विभाग के बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 की धारा 25 एवं 26 में संशोधन एवं धारा 170 (क) के बाद 170 (ख) और 170 (ग) जोड़ने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की गई।

  • बिहार पंचायत राज संशोधन अध्यादेश 2017 के प्रभावी होने के बाद पंचायत संस्थाओं को और अधिक शक्ति मिलेगी, जिससे उसके अधीन क्रियान्वित होने वाली योजनाओं के कायरे में तेजी आएगी। 

  • अधिनियम की धारा 25 की उपधारा (1) के तहत ग्राम पंचायत अपने कायरें को प्रभावी तरीके से करने के लिए छह समितियों योजना, समन्वय एवं वित्त समिति, उत्पादन समिति, सामाजिक न्याय समिति, शिक्षा समिति, लोक स्वास्य, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता समिति और लोक निर्माण समिति का गठन कर सकेगी।

  • ग्राम पंचायत को इन समितियों के गठन का अधिकार वर्ष 2006 के अधिनियम में भी दिया गया था, लेकिन संशोधन अध्यादेश लागू होने से इन समितियों में ग्राम पंचायत के अधिकार एवं कार्य में और बढ़ोतरी हो जाएगी। 

  • योजना, समन्वय एवं वित्त समिति को धारा 22 में वर्णित विषयों सहित ग्राम पंचायत से संबंधित सामान्य कार्य, अन्य समितियों के कायरें का समन्वय और अन्य समितियों के प्रभार में नहीं रहने पर उसके शेष कायरें के संपादन जैसे कार्य करने हैं। 

  • वहीं उत्पादन समिति को कृषि, पशुपालन, डेयरी, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन, वानिकी, खादी ग्राम या कुटीर उद्योग एवं गरीबी उपशमन संबंधी कार्य करने के साथ ही उसकी निगरानी और निरीक्षण का भी अधिकार होगा।



Sorce of the News (With Regards):- compile by Dr Sanjan,Dainik Jagran (Rashtriya Sanskaran), Dainik Bhaskar (Rashtriya Sanskaran), Rashtriya Sahara (Rashtriya Sanskaran) Hindustan dainik (Delhi), Nai Duniya, Hindustan Times, The Hindu, BBC Portal, The Economic Times (Hindi& English)

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