चुनाव आयोग कैसे चुनाव चिन्ह तय करता है

चुनाव आयोग द्वारा चुनाव चिन्ह का आवंटन 

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समाजवादी पार्टी में शुरू हुई वर्चस्व की जंग पार्टी के चुनाव चिन्ह तक पहुँच गई थी। एक ही चुनाव चिन्ह को लेकर पार्टी के दो गुट चुनाव आयोग तक पहुँच गये थे। ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग ने कैसे एक ही दल के दो समूहों में विवाद की स्थिति में चुनाव चिन्ह तय किया और इससे संबंधित प्रावधान क्या था?



1. किस अधिकार के तहत चुनाव आयोग इस तरह के विवादों का फैसला करता है?


‘चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश 1968’ चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के मान्यता देने और प्रतीकों के आवंटन का अधिकार देता है। गौरतलब है कि इस आदेश के अनुच्छेद 15 के तहत, चुनाव आयोग एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रतिद्वंद्वी समूहों के बीच नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर होने वाले विवादों का फैसला कर सकता है।

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2. अनुच्छेद 15 की कानूनी स्थिति क्या है?


अनुच्छेद 15 के तहत, केवल चुनाव आयोग को ही दलों के विलय और अन्य विवादों से संबंधित मुद्दों पर सुनवाई का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने 1971 में सादिक अली बनाम भारतीय चुनाव आयोग के फैसले में इस अनुच्छेद की वैधता को बरकरार रखा।


3. एक समूह को अधिकृत दल बनाने से पहले चुनाव आयोग किस बात पर विचार करता है?


चुनाव आयोग प्राथमिक तौर पर यह देखता है कि अधिकृत पार्टी बनाये जाने की मांग कर रहे समूह में से किस समूह को मान्यताप्राप्त दल के संगठनात्मक विंग और विधायी विंग का समर्थन प्राप्त है?


4. किस समूह को बहुमत प्राप्त है यह कैसे निर्धारित करता है चुनाव आयोग?

चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त दल का संविधान देखता है और पदाधिकारियों की सूची पर गौर करता है जब पूर्व में मान्यता प्राप्त दल में कोई मतभेद नहीं था।

चुनाव आयोग संगठन में शीर्ष समितिओं की पहचान करता है और कौन से-समूह को कितने पदाधिकारियों, सदस्यों या प्रतिनिधियों का समर्थन प्राप्त है, इसकी गणना करता है।

जहाँ तक विधायी विंग का सवाल है यह देखता है कि किस समूह को संबंधित दल के कितने सांसदों और विधायकों का समर्थन प्राप्त है। यह विधायकों और सांसदों द्वारा दिए गए हलफनामों पर भी विचार कर सकता है, गौरतलब है कि इन हलफनामों में इस बात का वर्णन होता है कि वे किस समूह के साथ जाना चाहते हैं।

चुनाव आयोग संगठनात्मक विंग और विधायी विंग दोनों में बहुतायत समर्थन प्राप्त समूह को मान्यता पाप्त दल की ज़िम्मेदारी सौंप सकता है और दूसरे समूह को एक नए दल के तौर पर पंजीकरण का सलाह दे सकता है।

यदि किसी भी दल को पर्याप्त समर्थन नहीं मिल रहा हो तो ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त दल का चुनाव चिन्ह जब्त कर सकता है और दोनों दलों को भिन्न-भिन्न चुनाव चिन्ह आवंटित कर सकता है।

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गौरतलब है कि प्रतिद्वंदी समूह में से कोई भी मान्यताप्राप्त दल के नाम का उपयोग नहीं कर सकता है। हालाँकि मान्यताप्राप्त दल के नाम में उपसर्गों का प्रयोग कर उसका उपयोग किया जा सकता है।

उपरोक्त प्रावधानों के तहत अखिलेश गुट में संघटनात्मक और विधायी विंग के अधिक सदस्यो का समर्थन प्राप्त था, इसी आधार पर समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह साईकल अखिलेश यादव गुट को दिया गया। आयोग ने अखिलेश दल को ही मूल समाजवादी दल माना।


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